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वरामूर्तिस्वरा मंदिर तमिलनाडु : प्राचीन ज्ञानियों को पहले ही जानकारी थी सूक्ष्म चीज़ों की

भारत मे कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं जो हमे इस बात का प्रमाण देते हैं की हमारे देश के प्राचीन लोगों के ज्ञान का स्तर अति विकसित था जो कि केवल एक क्षेत्र मे सीमित नहीं था। हमारे प्राचीन लोग अंतरिक्ष से लेकर मेडिकल साइंस,निर्माण कला से लेकर फैशन तक सबका सम्पूर्ण ज्ञान रखते थे, जब दुनिया के अन्य देश इन सब चीज़ों के बारे मे जानते तक नहीं थे। दुनिया मे साइंस और टेक्नोलॉजी से जुड़े यंत्रों के अविष्कार 15  वीं 16  वीं शताब्दी मे होना शुरू हुए और इन्ही शताब्दियों के आसपास के दौरान भारत मे बाहरी आक्रमणकारियों का आगमन शुरू हो चुका था जिसमे उन्होंने हमारे यहाँ के ज्ञान और संस्कृति को नष्ट करना शुरू कर दिया, जिस वजह से आने वाले समय मे नयी पीढ़ियों का ज्ञान स्तर कम होता गया और अपनी प्राचीन संस्कृति से भरोसा उठने लगा और नतीजा यह हुआ कि हम यह मानने लगे कि जो भी अविष्कार हो रहे हैं वह नए हैं, इससे पहले इस तकनीक और जानकारी को पहले किसी ने इस्तेमाल नहीं किया है, जिसके पीछे कि वजह यह है कि पश्चात देशों के वैज्ञानिकों  के पास तर्क और प्रमाण थे अपने अविष्कारों को साबित करने के लिए और हमारे पास नहीं। 


भले ही आज के आधुनिक समय मे हमारे पास वह नष्ट हो चुका प्राचीन ज्ञान न हो लेकिन आज भी भारत मे कई जगह प्राचीन मंदिर अपने स्थान पर अटल खड़े हैं जिनमे प्राचीन विज्ञान से जुडी  कई जानकारियों को शिल्पकारी और चित्रकला के माध्यम से दर्शाया गया है जो इस बात का प्रमाण हैं कि भारत प्राचीन समय मे साइंस और टेक्नोलॉजी मे बहुत आगे था। 
ऐसा ही एक उदहारण हमें भारत के तमिलनाडु प्रदेश मे स्थित अरियाथुरई गाँव मे एक प्राचीन मंदिर मे देखने को मिलता है। इस मंदिर का नाम वरामूर्तिस्वरा मंदिर है जो भगवान्  शिव का मंदिर है जिसके बारे मे कहा जाता है कि यह 5000  से 6000  साल पुराना है। इस मंदिर कि छत पर बड़ी ही दिलचस्प आकृतियां बनी हुई हैं जिसमे ग्रहण को सांकेतिक रूप से दर्शाया गया है और उसी के पास एक और दूसरी आकृति मे प्रजनन से सम्बंधित शुक्राणुओं को उदहारण समेत दिखाया गया है जिसमे उन्होंने मछली का उपयोग किया है और ऐसा कहा जाता है कि दक्षिण भारत के प्राचीन ग्रंथों मे मछली को दैवीय बताया गया है और इस चित्र मे गर्भधारण की प्रक्रिया को समझाया गया है। इन दोनों आकृतियों मे बनाने वाले ने दो अलग अलग विषयों का बड़ा बारीक और सटीक चित्रण कर हमे यह बताया है कि ग्रहण और गर्भधारण की प्रक्रिया कैसे होती हैं। 


अब अगर हम इस मंदिर को 5000/6000  साल पुराना न मानकर 1000  साल पुराना भी माने जैसा कि इसके पुनर्निर्माण को लेकर कहा जाता है कि छोला वंश जो कि 1000  साल पहले का राज वंश है के राजा कुंजारा छोला  द्वारा इस मंदिर का विस्तारीकरण और पुनर्निर्माण करवाया गया था तो इस मंदिर कि आकृतियां, दुनिया मे माइक्रोस्कोप के आविष्कार (1590 ) से 570  साल पुरानी तो हुईं ही जिनमे सूक्ष्म चीज़ों की हमारे  प्राचीन ज्ञानियों को पहले ही जानकारी थी। 


 

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