History, Heritage,Culture, Food, Travel, Lifestyle, Sports
sanjeev kumar singh इंसानियत अभी भी ज़िन्दा BY Devendra Pathak ji
Monday, 11 Jan 2021 09:07 am
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बात लगभग दो दशक पुरानी है उस समय बिहार में विख्यात दंपति का शासन काल था और हमारे जैसे लोगों को नयी नयी नौकरी में आए हुए कुछ साल दो साल हुए थे. उस समय मैं दरभंगा में पोस्टेड था. हुआ यूँ कि मैं अपने घर भोजपुर से छठ की छुट्टी बिता कर अपनी नयी Bajaj Bike से दरभंगा के लिए चल पड़ा मुजफ्फरपुर आते शाम ढल गई थी मैं ज़ीरो मील चौराहे के आसपास एक दुकान पर चाय पिने के लिए रुका और अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा. मैं अपनी मस्ती में अपनी नयी बाइक के साथ मजे से चला जा रहा था तभी मुझे अपने साइड मिरर से लगा कि पीछे वाली बाइक मुझे पीछा कर रही है. कभी वो आगे कभी मैं आगे ये चलता रहा. जब गाय घाट यानि मुजफ्फरपुर दरभंगा के बीच में आया जो लगभग 10 KM तक सुन सान रास्ता था वहीं मुझे घेर लिया गया कान पर बंदूक और मोटरबाइक हवाले कर देने का आदेश. वो दो थे दोनों के हाथ में हथियार और मैं अकेला जहां मुझे अपनी जान भी बचानी थी और मोटरसाइकिल भी. तभी अचानक एक ट्रक दरभंगा के तरफ से आई उसके तेज रौशनी में वो दोनों थोड़े समय के लिए असहज हुए और मुझे सहसा लगा कि इस मौके का फायदा उठाना चाहिए. मैं फौरन अपने बाइक उल्टा यानि मुजफ्फरपुर की ओर मोड़ लिया अब आगे आगे मैं फिर वो ट्रक उसके पीछे वो दोनों. वो मुझे डराने के लिए फायरिंग कर रहे थे और जान से मारने की धमकी भी दे रहे थे और मैं अपनी पूरी ताकत से बाइक को दौड़ाये जा रहा था इसी क्रम में रोड किनारे कुछ झुग्गी झोपड़ी जैसा मुझे दिखा और मैं वहीं एक झुग्गी के पास रुक गया और वो लोग इस गुगली को समझ नहीं सके और वो ट्रक को फॉलो करते करते आगे बढ़ गए. अब मैं उस झुग्गी जो रोड की एक चाय दुकान थी उसके पास खड़ा था और सामने खड़ा बुजुर्ग मुझे और मेरी हालत देखकर घबरा उठा बोला कि बाबू मैं दुकान बढ़ा रहा हूँ यहाँ आपका रुकना ठीक नहीं है हो सकता है वो वापस आपको खोजते हुए लौटे तब और दिक्कत हो जाएगी. तब मैं पूछा कि बाबा कोई तो उपाय बताओ फिर उसने कहा कि यहाँ से करीब तीन चार KM अंदर एक गाँव है और उसी चौराहे पर एक मेडिकल स्टोर है वहाँ जाकर आप मदद माँग सकते हैं. मुझे कुछ नहीं सूझा और मैंने अपनी बाइक उस अनजान गाँव में अपनी प्राण रक्षा के लिए चल पड़ा. गाँव के चौराहे पर मेडिकल स्टोर मिला और मिले मेरे पिता जी के उम्र के एक व्यक्ति श्री ललितेश्वर प्रसाद सिंह जी मैं मूक अवस्था में पसीने से तर बतर उनके सामने खड़ा था.

बड़ी ही विनम्रता से उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या बात है आप इतने परेशान क्यों हैं फिर मैं उनको अपना पूरा वृतांत बताया और प्राण रक्षा के लिए रात्रि विश्राम हेतु सरंक्षण माँगा. उन्होंने कहा कि अब आप निश्चिन्त हो जाएं अब आपको कोई अपराधी क्या ओसामा बिन लादेन के लोग भी छू नहीं सकता. फिर उन्होंने मेरा पूरा परिचय पूछा और अपने घर ले गए. बड़ा सा अहाता बड़ा सा मकान. घर पहुंचते ही आवाज लगाई अजी कहाँ हो देखो एक भूला हुआ बेटा आज तुम्हारे घर आया है. फिर क्या था घर के सारे लोग मुझे इस तरह से मिले की मैं मर कर जिंदा हो गया. भैया भाभी दीदी भतीजा भतीजी सब ऐसे मिले जैसे वर्षों से मैं इन्हें जानता हूं और ये लोग मुझे. सुबह हुई नाश्ता भोजन कराकर मुझे बड़े ही प्यार और सम्मान के साथ दरभंगा के लिए विदा किया गया. जब तक दरभंगा में पदस्थापित रहा तब तक बड़े ही अधिकार से आता जाता रहा.

आज हमारे पिता तुल्य चाचा जी का फोन आया और उन्होंने कहा कि जरा विडियो से बच्चों से बात कराओ. सहसा मुझे वो सारी बातें याद आगई सोचा आज आप सबों को साझा करूँ ताकि लगे कि इंसानियत अभी भी ज़िन्दा